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सिंगल यूजर और मल्टीयूजर

जैसा की नाम से ही स्पष्ट है सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम में कम्प्यूटर पर एक समय में एक आदमी काम सकता है । सिंगल यूजर  ऑपरेटिंग सिस्टम मुख्यतः पर्सनल कम्प्यूटरों में प्रयोग किए जाते हैं, जिनका घरों व छोटे कार्यालयों में उपयोग होता है । डॉस, विंडोज इसी के उदाहरण है । मल्टीयूजर प्रकार के सिस्टमों में एक समय में बहुत सारे व्यक्ति काम कर सकते हैं और एक ही समय पर अलग-अलग विभिन्न कामों को किया जा सकता है । जाहिर है, इससे कम्प्यूटर के विभिन्न संसाधनों का एक साथ प्रयोग किया जा सकता है । यूनिक्स इसी प्रकार का ऑपरेटिंग सिस्टम है ।

आपरेटिंग सिस्टम की विशेषताए

1)मेमोरी प्रबंधन
प्रोग्राम एवं आकडो को क्रियान्वित करने से पहले मेमोरी मे डालना पडता है अधिकतर आपरेटिंग सिस्टम एक समय मे एक से अधिक प्रोग्राम को मेमोरी मे रहने की सुविधा प्रदान करता है आपरेटिंग सिस्टम यह निश्चित करता है कि प्रयोग हो रही मेमोरी अधिलेखित न हो प्रोग्राम स्माप्त होने पर प्रयोग होने वाली मेमोरी मुक्त हो जाती है ।

2) मल्टी प्रोग्रामिंग
एक ही समय पर दो से अधिक प्रक्रियाओ का एक दूसरे पर प्रचालन होना मल्टी प्रोग्रामिंग कहलाता है । विशेष तकनिक के आधार पर सी.पी.यू. के द्वारा निर्णय लिया जाता है कि इन प्रोग्राम मे से किस प्रोग्राम को चलाना हैएक ही समय मे सी.पी. यू. किसी प्रोग्राम को चलाता है

3) मल्टी प्रोसेसिंग
एक समय मे एक से अधिक कार्य के क्रियान्वयन के लिए सिस्टम पर एक से अधिक सी.पी.यू रहते है । इस तकनीक को मल्टी प्रोसेसिंग कहते है । एक से अधिक प्रोसेसर उपल्ब्ध होने के कारण इनपुट आउटपुट एवं प्रोसेसींगतीनो कार्यो के मध्य समन्वय रहता है ।

4) मल्टी टास्किंग
मेमोरी मे रखे एक से अधिक प्रक्रियाओ मे परस्पर नियंत्रण मल्टी टास्किंग कहलाता है किसी प्रोग्राम से नियत्रण हटाने से पहले उसकी पूर्व दशा सुरक्षित कर ली जाती है जब नियंत्रण इस प्रोग्राम पर आता है प्रोग्राम अपनी पूर्व अवस्था मे रहता है । मल्टी टास्किंग मे यूजर को ऐसा प्रतित होता है कि सभी कार्य एक साथ चल रहे है।

5) मल्टी थ्रेडिंग
यह मल्टी टास्किंग का विस्तारित रूप है एक प्रोग्राम एक से अधिक थ्रेड एक ही समय मे चलाता है । उदाहरण के लिए एक स्प्रेडशिट लम्बी गरणा उस समय कर लेता है जिस समय यूजर आंकडे डालता है

6)रियल टाइम
रियल टाइम आपरेटिंग सिस्टम की प्रक्रिया बहुत ही तीव्र गति से होती है रियल टाइम आपरेटिंग सिस्टम का उपयोग तब किया जाता है जब कम्पयुटर के द्वारा किसी कारेय विशेष का नियंत्रण किया जा रहा होता है । इस प्रकार के प्रयोग का परिणाम तुरंत प्राप्त होता है । और इस परिणाम को अपनी गरणा मे तुरंत प्रयोग मे लाया जाता है । आवशअयकता पडने पर नियंत्रित्र की जाने वाली प्रक्रिया को बदला जा सकता है । इस तकनीक के द्वारा कम्पयुटर का कार्य लगातार आंकडे ग्रहण करना उनकी गरणा करना मेमोरी मे उन्हे व्यवस्थित करना तथा गरणा के परिणाम के आधार पर निर्देश देना है

यूट्यूब से विडियो डाउनलोड करने का एक और विकल्प

यूट्यूब से विडियो डाउनलोड करने के लिए तो वैसे कई सॉफ्टवेयर, ब्राउजर एड ऑन्स और वेबसाइट मौजूद है ऐसे में आपके लिए एक मुफ्त वेबसाइट जहाँ से आप यूट्यूब और ऐसी ही अन्य विडियो साईट से विडियो डाउनलोड कर पायेंगे साथ ही इन विडियो को अपनी पसंद के फॉर्मेट में कन्वर्ट करके डाउनलोड करने की भी सुविधा मिलेगी ।

आप इस वेबसाइट से Youtube, Google Video, Sevanload, Myspace, Dailymotion, Metacafe, Veoh जैसी वेबसाइट के विडियो MP3, AAC, WMA, M4A, OGG, MP4, 3GP, AVI, MPG, WMV, FLV फोर्मट्स में डाउनलोड कर पायेंगे ।

यानि अगर आप विडियो अपने मोबाइल फ़ोन के लिए डाउनलोड करना चाहते हैं तो सीधे 3gp फॉर्मेट में ही डाउनलोड कर सकते है ।


इसमें आपको करना इतना है की जिस विडियो को आप डाउनलोड करना चाहते हैं उसकी लिंक (जैसे http://www.youtube.com/watch?v=CWqb-k6xUhA) इस वेबसाइट में टाइप या पेस्ट कर दीजिये और डाउनलोड बटन पर क्लिक कीजिये । अगर आप दुसरे फॉर्मेट में विडियो को डाउनलोड करना चाहते हैं तो उस फॉर्मेट के नाम वाले बटन पर क्लिक करें और अपनी इच्छानुसार विडियो सेटिंग को संयोजित कर लें ।


विडियो डाउनलोडिंग में लगने वाला समय आपके इंटरनेट कनेक्शन की गति और आपके द्वारा चुने गए फॉर्मेट के आधार पर कम या ज्यादा हो सकता है । इसमें आपको विडियो डाउनलोड करने से पहले उसका आकार भी दिखाया जाता है जो आपके लिए थोडा मददगार हो सकता है ।

विन्डोज़ की आन्तरिक/बाह्य एप्लिकेशन (सोफ्टवेयर)

जब कंप्यूटर मे ओपरेटिंग सिस्टम के तौर पर विन्डोज़ को लोड किया जाता है तो उसके साथ काम करने के लिए आवश्यक सोफ्टवेयर खुद ब् खुद लोड हो जाता है वहीँ विन्डोज़ का आन्तरिक एप्लिकेशन (सोफ्टवेयर) कहलाता है और जो सोफ्टवेयर विंडोज के लोड हो जाने के बाद अलग से किसी अन्य माध्यम से कंप्यूटर मे डाला जाता हैं उसे बाह्य एप्लिकेशन (सोफ्टवेयर) कहा जाता हैं.

आन्तरिक एप्लिकेशन के उदाहरण के लिए

 

MS-PAINT*                      - इस एप्लिकेशन का उपयोग चित्र बनाने के लिए किया जाता हैं.

 

CALCULATOR*               – अंकीय जोड़-घटा करने के लिए कैलकुलेटर का उपयोग किया जाता हैं.

 

INTERNET EXPLORER*        – इंटरनेट पर काम करने के लिए इस सॉफ्टवेर का उपयोग किया जाता हैं.

 

WINDOWS MULTIMEDIA*     – गाना-विडियो सुनने और देखने के लिए इस सॉफ्टवेर का उपयोग किया जाता हैं.

 

WINDOWS MOVIE MAKER*    – विडियो मे कुछ फेर बदल करने के लिए या जोड़ने आदि के लिए इस सॉफ्टवेर का उपयोग किया जाता हैं.

 

NOTEPAD*                  – यह एक टेक्स्ट एडिटर प्रोग्राम होता हैं, अर्थात इसके अंतर्गत लिखने आदि का काम होता हैं. यह प्रोग्राम दिखाने मे जितना साधारण लगता है उससे बहुत ज्यादा शक्तिशाली प्रोग्राम होता है. एसा कोई भी कंप्यूटर भाषा जिसे कमपईल करने की आवश्कता नहीं होती उसे नोटपेड पर लिखा जा सकता है जैसे                  HTML – (Hyper Text Markup Language*)

WORDPAD*                                       – यह भी एक टेक्स्ट एडिटर प्रोग्राम है जिसके अंतर्गत हम कोई पत्र या शब्दों से संबन्धित किसी काम को सम्पादित कर सकते हैं. इसके प्रयोग से हम साधारण टाइप राइटर्स की तुलना मे कहीं अच्छे तरीके से लिखने का काम कर सकते है.

 

बाह्य एप्लिकेशन के उदाहरण के लिए

MS OFFICE*                                       – यह एक बहुत उपयोगी प्रोग्राम का बण्डल है जिसके अंतर्गत लिखनेवाला काम तो होता ही है साथ ही साथ स्प्रेडशीट्स और प्रेसेंटेशन का भी काम होता हैं. स्प्रेडशीट्स का मतलब हुआ एक प्रकार का व्यापारिक लिखा जोखा वाला काम और प्रेसेंटेशन का मतलब हुआ लिखे हुए काम को दूसरों के पास दिखलाने का तरीका.

OUTLOOK*           – इस सोफ्टवेयर का प्रयोग इंटरनेट से मेल भेजने या मंगवाने के लिए किया जाता हैं. इसमें एक बार मेल आने के बाद पुनः उसे पढ़ने के लिए इन्टरनेट कनेक्शन की अवश्यकता नहीं होती.

 

PHOTOSHOP*        – चित्र से सम्बंधित वृहत काम के लिए इस सोफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता हैं.

 

COREL DRAW*        – लोगो डिजाइन से सम्बंधित काम के लिए इस सोफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता हैं.

 

FLASH*              – चलंत चित्र (Animation) बनाने के लिए इस सोफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता हैं.

 

PAGE MAKER*        – पत्र डिजाइन से सम्बंधित काम के लिए इस सोफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता हैं.

 

.NET*                – स्वयं का अलग काम करने के लिए प्रयुक्त होने वाले प्रोग्राम को बनाने के लिए से सम्बंधित काम के लिए इस सोफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता हैं.

 

ORACLE       *             – डाटाबेस के लिए इस सोफ्टवेयर का प्रयोग किया जाता हैं. डाटाबेस का अर्थ हुआ एसी जगह जहाँ हम अपने डाटा को सुसज्जित तरीके से पुनः प्रयोग मे लाने के लिए रखते हैं. जैसे अगर हमे किसी विद्यार्थी का डाटा रखना है तो उससे जुड़ी बहुत सी जानकारी रखना होता है जैसे उसका नाम, क्लास, पिता का नाम, घर का पता इत्यादि.

नोट- जहां जहां * हैं उसका मतलब हैं की हम उसकी चर्चा आगे बहुत विस्तार से करेंगे.

इन्टरनेट का उपयोग 

 

सामान्यतया  इन्टरनेट प्रयोक्ता केवल वर्ड-वाइड-वेब को ही इन्टरनेट का एकमात्र संसाधन समझता हैं. परन्तु सत्य यह हैं कि इन्टरनेट के दुवारा वेब उपयोग तथा ई-मेल के अतिरिक्त भी अन्य महत्वपूर्ण सेवाएं प्राप्त की जा सकती हैं. इन सेवाओं में से कुछ सेवाओं का संछिप्त विवरण यहाँ प्रस्तुत हैं-

फ़ाइल ट्रान्सफर प्रोटोकॉल - फ़ाइल ट्रान्सफर प्रोटोकॉल का उपयोग एक कंप्यूटर नेटवर्क से किसी दूसरे कंप्यूटर नेटवर्क में फ़ाइल को भेजने करने के लिए किया जाता हैं. इस प्रोटोकॉल के दुवारा सर्वर से किसी अन्य कंप्यूटर पर फाईल भी कॉपी की जा सकती हैं.

इलेक्ट्रोनिक मेल-इलेक्ट्रॉनिक मेल को संछिप्त  रूप से ई-मेल कहा जाता हैं. इस माध्यम के दुवारा आप बड़ी से बड़ी सूचनाओ तथा संदेशों को इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली दुवारा प्रकाश की गति से भेज या प्राप्त कर संकते हैं. ई-मेल दुवारा पत्र, ग्रीटिंग व कंप्यूटर के प्रोग्राम को दुनिया के किसी भी कोने से किसी भी हिस्से में भेज सकते हैं. इसके बारे में हम आगे और भी विस्तार से पढेंगे.

गोफर- गोफर का अविष्कार अमेरिका के मिनिसोटा नामक विश्वविद्यालय में हुआ था. यह एक यूजर फ्रेंडली इंटरफेस हैं, जिसके माध्यम से यूजर इन्टरनेट पर प्रोग्राम तथा सूचनाओं का अदान-प्रदान कर सकता हैं. गोफर यूजर की वांछित सूचनाओं तथा प्रोग्राम को खोज कर यूजर के सामने रख देता हैं. इसका प्रयोग अत्यंत सरल हैं.

वर्ल्ड-वाइड-वेब -इन्टरनेट  का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन वर्ल्ड-वाइड-वेब  को समझा जाता हैं. इसे संछिप्त में ३ डब्लू www के दुवारा प्रदर्शित किया जाता हैं. वर्ल्ड-वाइड-वेब  के दुवारा यूजर अपना या अपनी संस्था का वेब पेज बना कर नेट पर रख सकता हैं. जिसे फिर दुनिया के किसी भी कोने से देखा जा सकता हैं.

टेलनेट – डाटा के हस्तांतरण के लिए टेलनेट का उपयोग किया  जाता हैं. इस प्रोटोकॉल के इस्तेमाल से हम कहीं दूर अन्यत्र रखें कंप्यूटर पर अपना डाटा भेज या मंगवा सकते हैं. हम दूरस्थ कंप्यूटर को कण्ट्रोल भी  कर सकते हैं.

वेरोनिका – विरोनिका प्रोटोकॉल गोफर के माध्यम से काम करता हैं. इसके उपयोग से डाटाबेस तक पंहुचा जाता हैं.

कंप्यूटर भाषा (Computer Languages)

अपनी बातों को दूसरे के साथ एकदम सटीक तरीके से समझाने का माध्यम ही भाषा कहलाता है. हम कंप्यूटर से भी बात करते हैं मतलब हम कंप्यूटर को निर्देशित करते हैं और इस निर्देसन के लिए हम जिस भाषा का प्रयोग करते है वो कंप्यूटर भाषा के तौर पर जाना जाता हैं. कंप्यूटर केवल विद्युत धारा के चालू या बंद, ० या १ मे अंकित भाषा ही समझ सकता है इन्हें बिट Binary Digit कहा जाता है. अतः कंप्यूटर से यदि कोई कार्य समपन्न करना है तो इसी भाषा मे समादेश तथा सूचनाएं देनी होती है. शुरुआती दौर में कागज के कार्डों में छिद्र करके कंप्यूटरों को निर्देश दिए जाते थे.

कंप्यूटर भाषाओं के निम्न प्रकार होते हैं-

१.       मशीनी भाषा (Machine Language, Low Level Language, LLL)

२.      संयोजन भाषा (Assembly Language, Middle Level Language, MLL)

३.      उच्च स्तरीय भाषा (High Level Language, HLL)

मशीनी भाषा – कंप्यूटरों के विकास के बाद उनसे संवाद स्थापना के लिए अनुदेश बाइनरी सिस्टम मे ही अंकित किये जाते थे. इससे मशीन से सीधे संपर्क होता हैं, इसलिए इसे मशीनी भाषा कहा जाता हैं. कंप्यूटर मूलतः केवल यही भाषा समझता है. आज भी कंप्यूटर से संपर्क करने लिए हम इसी भाषा का प्रयोग करते है मगर काम करने वालो को इसका आभास नहीं हो पाता है. उपयोगकर्ता तथा कंप्यूटर के बीच प्रयुक्त भाषाएँ तथा प्रोग्राम इस कार्य को संपन्न करते रहते है.

उदाहरण

अगर हम Keyboard से ‘A’ टाइप करते हैं तो कंप्यूटर पहले उसके लिए पूर्व से निर्धारित ASCII संख्या =65 पहचानती है और फिर उससे मशीनी भाषा मे बदलती है.               A = 65 = 1000001 मे बदलती हैं तब हमें एक आकृति प्राप्त होती है जो A होती हैं. यह सारी प्रक्रिया एक सेकंड के १००००० हिस्से मे होती है इस कारण हमें पता नहीं चलता.

मशीनी भाषा की समस्याएं- ० और १ मे कंप्यूटर को बार बार समझाने की प्रक्रीया आसान नहीं होती. अगर हमें कोई जटिल गणनाओं की आवश्यकता हो तो लिखने मे समस्या आ जाएगी.

संयोजन भाषा ० और १ मे कंप्यूटर को बार बार समझाने की प्रक्रीया आसान नहीं होती इससे भाड़ी तनाव की स्थिति उत्पन होती है. इस तनाव से मुक्ति के लिए विशेषज्ञओ ने सांकेतिक भाषाओं का अविष्कार किया. उन्होंने प्रत्येक प्रक्रीया के लिए एक सरल शब्द को चुन लिया. ये शब्द मशीनी भाषा के ही पर्याय मान लिये गए. इन शब्दों से निर्मित भाषाओं को संयोजन भाषा कहा जाता हैं. इन शब्दों को पुनः कंप्यूटर को मशीनी भाषा मे समझाने के लिये असेम्ब्लेर का उपयोग किया जाता है.

उदाहरण

अगर हमे शीर्षक प्रारम्भ करना है तो SOH कमांड का प्रयोग किया जाता. जब भी कंप्यूटर पर नया शीर्षक की आवश्यकता होती वहाँ इस कमांड के उपयोग से कंप्यूटर समझ जाता की उसे अब नया शीर्षक बनाने का काम करना हैं. मशीनी भाषा मे कंप्यूटर को यह बात बतलाने के लिये ०,१,०,१,१,० जैसा एक लंबा लाइन लिखना पड़ता था.

संयोजन भाषा की समस्याएं- एक बार लिखे गए प्रोग्राम को बदलने मे समस्या उत्पन्न होती थी. इस भाषा मे प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को उस मशीन की हार्डवेयर की भी जानकारी रखनी पड़ती थी जिसमे वो प्रोग्राम चलता.

उच्च स्तरीय भाषा कंप्यूटर का व्यावसायिक उपयोग बढ़ाने के साथ एक नया समस्या सामने आया. हरेक व्यावसायिक कंप्यूटर उपयोगकर्ता को अपने व्यवसाय के अनुसार प्रोग्राम की आवश्यकता होने लगी. परन्तु कंप्यूटर कार्य प्रणाली को जानने वालों की संख्या बहुत ही सिमित थी. अचानक बड़ी संख्या मे विशेषज्ञ प्रोग्रामरों को तेयार करना संभव नहीं था. अतः विशेषज्ञ प्रोग्रामरो ने एक और भी आसान भाषा का विकास किया जिसे उच्च स्तरीय भाषा कहा गया. इस भाषा के अंतर्गत की-वर्ड का निर्माण किया गया. जो साधारण इंग्लिश शब्दों से मिलता था. इस कारण इसे आसानी से याद भी रखा जा सकता था. इसके उपयोग के लिये कंप्यूटर कार्य प्रणाली की जानकारी आवश्यक नहीं रह गया. उच्च स्तरीय भाषा को मशीनी भाषा मे कंप्यूटर को समझाने के लिये इंटर-प्रेटर की आवश्यकता होती है. C, C++, C#, FORTAN, PASCAL, ORACLE आदि इसके उदाहरण है.

नेटवर्क इंटरफेस कार्ड


यह एक हार्डवेयर डिवाइस हैं जो कंप्यूटर को नेटवर्क में संचार स्थापित करने में सहायता प्रदान करता हैं. नेटवर्क के अंतर्गत कंप्यूटर एक निश्चित प्रोटोकॉल (कोई काम करने का पूर्व से निर्धारित एक नियम) के तहत डाटा पैकेट को आपस में आदान प्रदान करता हैं.

वायरलेस तकनीक

जैसा कि नाम से ज्ञात होता हैं यह बिना तारो कि तकनीक हैं. अर्थार्त इसके द्वारा डेटा का परिवहन बिना तारों या केबल के होता हैं. इस तकनीक के प्रयोग से केबल में होने वाले खर्च की भी बचत होती हैं. इस तकनीक में केबल के स्थान पर इलेक्ट्रोमग्नेटिक तरंगे, माइक्रोवेव, इन्फ्रारेड आदि के दुवारा डाटा का परिवहन होता हैं. वायरलेस तकनीक के अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं- टेलीविजन रिमोट, मोबाइल फोन, वाई-फाई आदि.

वाई-मेक्स

यह एक डिजिटल वायरलेस संचार प्रणाली हैं. यह तकनीक बिना केबल के ७५ मेगाबाइट / सेकंड ब्रॉडबैंड स्पीड प्रदान करती हैं.

वायरलेस लोकल लूप

यह एक वायरलेस संचार प्रणाली हैं जिसमे उपभोक्ता नेटवर्क से रेडियो आवृत्ति के प्रोयोग से जुड़ते हैं. यह एक बेहतर आवाज तथा उच्च गति डेटा क्षमता प्रदान करता हैं. जिस स्थान पर लैंड लाइन टेलीफोन का प्रवाधान नहीं हैं उस जगह वायरलेस लोकल लूप काकिया जाता हैं. यह CDMA तकनीक पर आधारित होता हैं.


मोड्युलेशन


यह किसी जानकारी को लंबी दूरी तक सिग्नल के रूप में भेजने के लिए उपयोग होता हैं. मोड्युलेशन डिजिटल सिग्नल को एनालॉग रूप में बदलने की प्रक्रिया हैं. यह मोडेम (MODEM- Modulator Demodulator) के दुवारा संभव होता हैं. मोडेम एक विद्युत यंत्र हैं जो डिजिटल सिग्नल को एनालॉग मे और एनालॉग सिग्नल को डिजिटल सिग्नल मे बदलने का काम करता हैं.

मोड्युलेशन तीन प्रकार के होते है-

१. आयाम (Amplitude) मोड्युलेशन (AM)- इस प्रक्रिया में वाहक सिग्नल का आयाम सूचना युक्त डिजिटल सिग्नल के अनुरूप बदला जाता हैं.

२. आवृति (Frequency) मोड्युलेशन (FM)- इस प्रक्रिया में वाहक सिग्नल की आवृति को सूचना युक्त डिजिटल सिग्नल के अनुरूप बदला जाता हैं.

३.- चरण (Phase) मोड्युलेशन (PM)-इस प्रक्रिया में वाहक सिग्नल के फेज को डिजिटल सिग्नल के अनुरूप बदला जाता हैं.


कंप्यूटर नेटवर्क के प्रकार

 

कंप्यूटर नेटवर्क आपस मे जुड़े कंप्यूटरों का समूह है जो एक दूसरे से संचार स्थापित करने तथा सूचनाओ, संसाधनों को साझा इस्तेमाल करने मे सक्षम होते है.

नेटवर्क के निम्नलिखित प्रकार होते है-

लोकल एरिया नेटवर्क- LAN- (LOCAL AREA NETWORK)- यह एक कंप्यूटर नेटवर्क है जिसके अंदर भौगोलिक परिधि सिमित होता है जैसे – घर, ऑफिस, भवनों का छोटा समूह आदि का कंप्यूटर नेटवर्क. वर्तमान लेन इथेर्नेट तकनीक पर आधारित होता है. इस नेटवर्क का आकार छोटा परन्तु डाटा संचारण की तीव्र गति होती है.

वाईड एरिया नेटवर्क – WAN- (WIDE AREA NETWORK)- इस नेटवर्क मे कंप्यूटर आपस मे लीज्ड लाइन या स्विच सर्किट के दुवारा जुड़े रहते हैं. इस नेटवर्क की भौगोलिक परिधि बड़ी होती है जैसे पूरा शहर, देश या महादेश मे फैला नेटवर्क का जाल. इन्टरनेट इसका एक अच्छा उदाहरण हैं. बैंको का ATM सुविधा वाईड एरिया नेटवर्क का उदाहरण हैं.

मेट्रोपॉलिटन एरिया नेटवर्क- MAN- (METROPOLITAN AREA NETWORK)- इसके अंतर्गत दो या दो से अधिक लोकल एरिया नेटवर्क एक साथ जुड़े होते हैं. यह एक शहर के सीमाओ के भीतर का स्थित कंप्यूटर नेटवर्क होता हैं. राउटर, स्विच और हब्स मिलकर एक मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क का निर्माण करता हैं.  

सॉफ्टवेयर दो प्रकार के होते हैं 

   

1)सिस्टम सॉफ्टवेयर

“सिस्टम सॉफ्टवेयर” यह एक ऐसा प्रोग्राम होता है , जिनका काम सिस्टम अर्थात कम्प्यूटर को चलाना तथा उसे काम करने लायक बनाए रखना है । सिस्टम सॉफ्टवेयर ही हार्डवेयर में जान डालता है । ऑपरेटिंग सिस्टम, कम्पाइलर आदि सिस्टम सॉफ्यवेयर के मुख्य भाग हैं ।


 

2)एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर
‘एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर’ ऐसे प्रोग्रामों को कहा जाता है, जो हमारे कंप्यूटर पर आधारित मुख्य  कामों को करने के लिए लिखे जाते हैं । आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न उपयोगों के लिए भिन्न-भिन्न सॉफ्टवेयर होते हैं । वेतन की गणना, लेन-देन का हिसाब, वस्तुओं का स्टाक रखना, बिक्री का हिसाब लगाना आदि कामों के लिए लिखे गए प्रोग्राम ही एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर कहे जाते  हैं ।

 

कम्प्यूटर की पीढ़ी

कम्प्यूटर यथार्थ मे एक आश्चर्यजनक मशीन है। कम्प्यूटर को विभिन्न पीढ़ी मे वर्गीकृत किया गया है। समय अवधि के अनुसार कम्प्यूटर का वर्गीकरण नीचे दिया गया है।

प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर ( 1945 से 1956)

द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर (1956 से 1963)

तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटर (1964 से 1971)

चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटर(1971 से वर्तमान)

पंचम पीढ़ी के कम्प्यूटर (वर्तमान से वर्तमान के उपरांत) 

प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर ( 1945 से 1956)

सन् 1946 मे पेनिसलवेनिया विश्वविधालय के दो ईंजिनियर जिनका नाम प्रोफेसर इक्रर्टऔर जॉन था। उन्होने प्रथम डिजिटल कम्प्यूटर का निर्माण किया। जिसमे उन्होने वैक्यूम ट्यूब का उपयोग किया था। उन्होने अपने नए खोज का नाम इनिक(ENIAC) रखा था। इस कम्प्यूटर मे लगभग 18,000 वैक्यूम ट्यूब , 70,000 रजिस्टर और लगभग पांच मिलियन जोड़ थे । यह कम्प्यूटर एक बहुत भारी मशीन के समान था । जिसे चलाने के लिए लगभग 160 किलो वाट विद्युत उर्जा की आवशयकता होती थी।

द्वितीय पीढी के कम्प्यूटर ( 1956 से 1963 )

सन् 1948 मे ट्रांजिस्टर की खोज ने कम्प्यूटर के विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका अदा की । अब वैक्यूम ट्यूब का स्थान ट्रांजिस्टर ने ले लिया जिसका उपयोग रेडियो ,टेलिविजन , कम्प्यूटर आदि बनाने मे किया जाने लगा । जिसका परिणाम यह हुआ कि मशीनो का आकार छोटा हो गया । कम्प्यूटर के निर्माण मे ट्रांजिस्टर के उपयोग से कम्प्यूटर अधिक उर्जा दक्ष ,तीव्र एवं अधिक विश्वसनिय हो गया । इस पीढी के कम्प्यूटर महंगे थे । द्वितीय पीढी के कम्प्यूटर मे मशीन लेंग्वेज़ को एसेम्बली लेंग्वेज़ के द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया । एसेम्बली लेंग्वेज़ मे कठिन बायनरी कोड की जगह संक्षिप्त प्रोग्रामिंग कोड लिखे जाते थे ।

तृतिय पीढी के कम्प्यूटर (1964 से 1975)

यद्यपि वैक्यूम ट्यूब का स्थान ट्रांजिस्टर ने ले लिया था परंतु इसके उपयोग से बहुत अधिक मात्रा मे ऊर्जा उत्पन्न होती थी जो कि कम्प्यूटर के आंतरिक अंगो के लिए हानिकारक थी । सन् 1958 मे जैक किलबे ने IC(integrated cercuit ) का निर्माण किया । जिससे कि वैज्ञानिको ने कम्प्यूटर के अधिक से अधिक घटको को एक एकल चिप पर समाहित किया गया , जिसे सेमीकंडकटर कहा गया, पर समाहित कर दिया । जिसका परिणम यह हुआ कि कम्प्यूटर अधिक तेज एवं छोटा हो गया ।

चतुर्थ पीढी के कम्प्यूटर

सन् 1971 मे बहुत अधिक मात्रा मे सर्किट को एक एकल चिप पर समाहित किया गया । LSI (large scale integrated circuit ) VLSI(very large scale integratd circuit ) ULSI(ultra large scale integrated circuit ) मे बहुत अधिक मात्रा मे सर्किट को एक एकल चिप पर समाहित किया गया । सन् 1975 मे प्रथम माइक्रो कम्प्यूटर Altair 8000 प्रस्तुत किया गया ।

सन् 1981 मे IBM ने पर्सनल कम्प्यूटर प्रस्तुत किया जिसका उपयोग घर, कार्यालय एवं विघालय मे होता है । चतुर्थ पीढी के कम्प्यूटर मे लेपटॉप का निर्माण किया गया । जो कि आकार मे ब्रिफकेस के समान था । plamtop का निर्माण किया गया जिसे जेब मे रखा जा सकता था

पंचम पीढी के कम्प्यूटर (वर्तमान से वर्तमान के बाद)

पंचम पीढी के कम्प्यूटर को परिभाषित करना कुछ कठिन होगा । इस पीढी के कम्प्यूटर लेखक सी क्लार्क के द्वारा लिखे उपन्यास अ स्पेस ओडिसी मे वर्णित HAL 9000 के समान ही है । ये रियल लाइफ कम्प्यूटर होंगे जिसमे आर्टिफिशल इंटेलिजेंस होगा । आधुनिक टेक्नॉलाजी एवं विज्ञान का उपयोग करके इसका निर्माण किया जाएगा जिसमे एक एकल सी. पी. यू . की जगह समानान्तर प्रोसेसिंग होगी । तथा इसमे सेमीकंडकटर टेक्नॉलाजी का उपयोग किया जाएगा जिसमे बिना किसी प्रतिरोध के विद्युत का बहाव होगा जिससे सूचना के बहाव की गति बढेगी ।

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मोडेम (MODEM- Modulator Demodulator)

 

जब इन्टरनेट को टेलीफोन लाइन के माद्यम से कनेक्ट करते हैं तो मोडेम की अवश्यकता होती हैं. यह कंप्यूटर में चल रहे इन्टरनेट ब्रोजर और इन्टरनेट सर्विस प्रदाता के बीच आवश्यक लिंक हैं. टेलीफोन लाइन पर एनालोग सिग्नल भेजा जा सकता हैं, जबकि कंप्यूटर डिजिटल सिग्नल देता हैं. अतः इन दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए मोडेम की अवश्यकता होती हैं, जो डिजिटल सिग्नल को एनालोग में और एनालोग सिग्नल को डिजिटल सिग्नल में रूपांतरित करता हैं. मोडेम के दोनों ओर कंप्यूटर ओर टेलीफोन लाइन से जुड़ा होना अवश्यक होता हैं. मोडेम से स्पीड को  Bit Per Second (BPS), Kilobyte Per Second (KBPS), Megabyte Per Second (MBPS),  में मापा जाता हैं.

मोडेम मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं –

अ)     इंटरनल (आंतरिक) मोडेम – ऐसा मोडेम जो डेस्कटॉप या लैपटॉप में अंदर से ही लगा होता हैं. ऐसा मोबाइल जिसमे हम इन्टरनेट का प्रयोग करते हैं, उसमे इसी प्रकार के मोडेम का इस्तेमाल किया  जाता हैं.

आ)   एक्स्टर्नल (बाह्य) मोडेम- ऐसा मोडेम जिसे डेस्कटॉप या लैपटॉप में बाहर से लगाना पड़ता हैं. डेटा कार्ड (Photon, IDIA etc) या PCMCI में इस प्रकार के मोडेम का उपयोग किया जाता हैं.

अतः मोडेम एक ऐसा डिवाइस हैं जो डेटा को पल्स में परिवर्तित करता हैं तथा उन्हें टेलीफ़ोन लाइन पर संप्रेषित करता हैं.

 डेटा ट्रांसमिशन सेवा (Data Transmission Service)

 

डेटा को एक स्थान से दूसरे स्थान भेजने के लिए जिस सेवा का उपयोग होता हैं उसे डेटा ट्रांसमिशन सेवा कहते हैं. इस सेवा को देने वाले को डेटा ट्रांसमिशन सेवा प्रदाता (Data Transmission Service Provider) कहते हैं. जैसे-
1. VSNL- विदेश संचार निगम लिमिटेड 
2. BSNL- भारत संचार निगम लिमिटेड 
3. MTNL- महानगर टेलिफोन निगम लिमिटेड
डेटा ट्रांसमिशन सेवा निम्नलिखित हैं-
१.      डायल अप लाइन (Dialup Line) – डायल अप लाइन टेलीफोन कनेक्शन से सम्बंधित हैं जो एक सिस्टम में बहुत सारे लाइनों तथा यूजर्स से जुड़ा होता हैं. इसका उपयोग टेलीफोन की तरह नंबर डायल कर संचार स्थापित करने में किया जाता हैं. इसे कभी कभी स्विच लाइन भी कहा जाता हैं. यह पहले से विद्यमान टेलीफोन सेवा का उपयोग करता हैं. ब्रॉडबैंड तकनीक भी डायल उप कनेक्शन का ही उपयोग करता हैं.
२.      लीज्ड लाइन (Leased Line) – लीज्ड लाइन आवाज और डेटा दूरसंचार सेवा के लिए दो स्थानों को जोड़ती हैं. यह एक सिर्फ, समर्पित लाइन (Dedicated Line) नहीं हैं, बल्कि यह वास्तव में दो बिंदु के बीच आरक्षित सर्किट हैं. इसका सबसे ज्यादा उपयोग उद्यगो दुवारा अपने शाखाओं को जोड़ने के लिए किया जाता हैं क्यूंकि यह नेटवर्क ट्राफिक के लिए बैंडविड्थ की गारण्टी देता हैं.
३.      एकत्रित सेवा डिजिटल नेटवर्क (ISDN- Integrated Services Digital Network)- एकत्रित सेवा डिजिटल नेटवर्क सर्किट स्विच टेलीफोन नेटवर्क के माध्यम से आवाज, डेटा और छवी का स्तान्तरण हैं. इस सेवा के अंतर्गत आवाज, डेटा और छवी को डिजिटल रूप में भेजा जाता हैं और जरुरत के अनुरूप इस्तेमाल किया जाता हैं. इस सेवा में मोडेम की जरुरत नहीं होती क्यूंकि डेटा का आदान प्रदान केवल डिजिटल रूप में होता हैं.

नेटवर्क टोपोलॉजी

 

 

 

नेटवर्क टोपोलॉजी विभिन्न नोड्स या टर्मीनल (कंप्यूटर) को आपस में जोड़ने का तरीका हैं. यह विभिन्न नोड्स के बीच भौतिक संरचना को दर्शाता हैं.

नेटवर्क टोपोलॉजी निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

१.       मेस नेटवर्क- यह नेटवर्क उच्च ट्रेफिक स्थिति में मार्ग को ध्यान में रखकर उपयोग किया जाता हैं. इसमें किसी भी स्रोत से कई मार्गो से सन्देश भेजा जा सकता हैं. पूर्णतः इंटरकोनेक्टेड मेस नेटवर्क खर्चीला हैं, क्यूंकि इसमें ज्यादा केबल और हर नोड पर इंटेलीजेंस की आवश्यकता होती हैं. इस नेटवर्क में उच्च सुरक्षा अनुप्रोयोग में डाटा प्रेषित किया जाता हैं.

२.       स्टार नेटवर्क-  इस नेटवर्क में एक केन्द्रीय नोड होता हैं जो इंटेलीजेंस से युक्त होता हैं. बाकी नोड्स इससे जुड़ा होता हैं. इस केन्द्रीय नोड को हब कहा जाता हैं. कोई एक केबल मे कोई समस्या आने पर नोड विफल होता हैं परन्तु हब में कोई समस्या आने पर सारा नेटवर्क विफल हो जाता हैं. इसका स्वरुप तारा के सामान होने के कारण इसे स्टार नेटवर्क के नाम से जाना जाता हैं.

३.       रिंग नेटवर्क- इस नेटवर्क में सभी नोड्स में इंटेलीजेंस होता हैं. डेटा का प्रवाह हमेशा एक ही दिशा में होता हैं परन्तु किसी भी एक केबल या नोड में समस्या आने पर दूसरे दिशा में डाटा का प्रवाह संभव हैं. इसका स्वरुप रिंग (गोले) के सामान होने के कारण इसे रिंग नेटवर्क के नाम से जाना जाता हैं.

४.       बस नेटवर्क- इस नेटवर्क के सभी नोड एक ही केबल से जुड़े होते हैं. कोई भी नोड किसी दूसरे नोड को डेटा प्रेषित करना चाहता हैं तो उसे देखना होता हैं कि बस में कोई डेटा प्रवाहित तो नहीं हो रहा हैं. बस खाली रहने पर नोड डेटा प्रेषित कर सकता हैं. डेटा प्राप्त करने करने के लिए हर नोड के पास इतनी इंटेलीजेंस होनी चाहये कि बस से अपने पता ज्ञात कर डेटा प्राप्त कर सके. इसमें कम केबल कि आवश्कता होती हैं. तथा कोई नया नोड जोड़ना आसान होता हैं. 

डेटा कम्यूनिकेशन माध्यम (Data Communication Medium)

 

एक कंप्यूटर से टर्मिनल या टर्मिनल से कंप्यूटर तक डाटा के प्रवाह के लिए किसी माध्यम की अवश्यकता होती हैं जिसे कम्यूनिकेशन लाइन या डाटा लिंक कहते हैं. ये निम्न प्रकार के होते है –

  • स्टैंडर्ड टेलीफोन लाइन (Standard Telephone Line)

  • को-एक्सेल केबल (Coaxial-Cable)

  • माइक्रोवेव ट्रांसमिशन (Microwave Transmission)

  • उपग्रह संचार (Satellite Communication)

  • प्रकाशीय तंतु (Optical Fiber)

स्टैंडर्ड टेलीफोन लाइन (Standard Telephone Line) – यह व्यापक रूप से उपयोग होने वाला डाटा कम्यूनिकेशन माध्यम हैं. इसके ज्यादा प्रभावी रूप से होने का कारण यह है की इसे जोड़ना सरल हैं तथा बड़ी मात्रा मे टेलीफोन केबल लाइन उपलब्ध है. ये दो तांबे के तार होते हैं जिनपर कुचालक की एक परत चढ़ी होती हैं.

 

 

को-एक्सेल केबल (Coaxial-Cable)- यह उच्च गुणवत्ता के संचार के माध्यम है. ये जमीन या समुन्द्र के नीचे से ले जाए जाते हैं. को-एक्सेल केबल के केन्द्र मे एक ठोस तार होता हैं जो कुचालक से चारों तरफ घिरा होता हैं. इस कुचालक के ऊपर तार की एक जाली होती हैं जिसके भी ऊपर एक और कुचालक की परत होती हैं. ये टेलिफोन तार की तुलना मे बहुत महगा होता है पर ये अधिक डेटा को ले जा सकता हैं. इसका उपयोग केवल टीवी नेटवर्क या फिर कंप्यूटर नेटवर्क मे किया जाता हैं

 

माइक्रोवेव ट्रांसमिशन (Microwave Transmission) –इस सिस्टम मे सिग्नल खुले जगह से होकर रेडियो सिग्नल की तरह संचारित किये जाते हैं. यह स्टैंडर्ड टेलिफोन लाइन और को-एक्सेल केबल की तुलना मे तीव्र गति से संचार अदान प्रदान करता हैं. एक सिस्टम मे डाटा एक सीधी रेखा मे गमन करती है तथा एंटीना की भी आवश्कता होती हैं. लगभग तीस किलोमीटर पर एक रिले स्टेशन की भी जरुरत होती है. इसका उपयोग टीवी प्रसारण और सेलुलर नेटवर्क मे किया जाता हैं.

 

 

उपग्रह संचार (Satellite Communication)- उपग्रह संचार तीव्र गति के डेटा संचार का माध्यम है. यह लंबी दूरी के संचार के लिए आदर्श माना जाता हैं. अंतरीक्ष मे स्थित उपग्रह को जमीन पर स्थित स्टेशन से सिग्नल भेजा जाता है. उपग्रह उस सिग्नल का विस्तार कर दूसरे जमीनी स्टेशन को पुनः भेजता है. एक सिस्टम मे विशाल डेटा के समूह को कम समय मे अधिकतम दूरी पर भेजा जाता हैं. इसका उपयोग उपग्रह फोन, टीवी, इन्टरनेट और कई वैज्ञानिक कारण से किया जाता हैं.

प्रकाशीय तंतु (Optical Fiber)- यह एक नई तकनीक हैं जिसमे धातु के तार या केबल के जगह विशिष्ट प्रकार के ग्लास या प्लास्टिक तंतु का उपयोग किया जाता हैं. ये बहुत ही हलकी और और बहुत ही तेजी से डाटा अदान प्रदान करने मे कारगर होती हैं. यह प्रकाश को आधार बना कर उसी के माध्यम से डाटा को भेजती है. यह पूर्ण आंतरिक परावर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता हैं. यह रेडियो आवृति अवरोधों से मुक्त होता हैं. आज हरेक छेत्र मे इसका उपयोग किया जाता हैं. आपने बहुत से जगह टेबल पर रखा पतले पतले तारो से लाइट निकलने वाला सजाने का सामान देखा होगा ये उसी के सिद्धांत पर काम करता हैं.

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विन्डोज़ का एसेसरीज मेनू

 

विंडोज के अंदर का अधिकांश आंतरिक प्रोग्राम एसेसरीज मेनू के अंदर दिखलाया जाता हैं जो स्टार्ट बटन के अंदर समाहित होता है.

एसेसरीज मेनू खोलने के लिए टास्कबार मे मौजूद स्टार्ट बटन पर क्लिक (जहाँ केवल एक बार क्लिक लिखा होगा वहाँ माउस का बयाँ बटन बस एक बार दबाना होगा ) करेंगे , फिर आल प्रोग्राम पर क्लिक करेंगे तो उसी से सटा हुआ एक और मेनू खुलेगा वहाँ साधारण तौर पर सबसे ऊपर एसेसरीज लिखा होता है (“Δ” प्रकार का सिम्बल मेनू मे जहाँ दिखेगा उसका मतलब हुआ की उसके अंदर और प्रोग्राम मौजूद है) वहाँ एसेसरीज पर क्लिक करेंगे तो एक और मेनू खुलेगा जो इस प्रकार दिखाई देगा

एक्स पी (एक्स्टेंडेड प्रोफेशनल)

प्रारम्भ में कंप्यूटर पर ग्रफिक्स, ओडियो आदि से संबन्धित काम नहीं किया जा सकता था, इसके फलस्वरुप G.U.I (ग्राफिकल यूजर्स इंटरफेस ) का खोज किया गया. इसके आने के बाद जिस कंप्यूटर को बहुत जटिल माना जाता था उसका उपयोग करना बहुत ही आसान हो गया. बड़े बड़े कंप्यूटर आदेशों को चित्र के दुवारा प्रदर्शित करना संभव हो गया. और कंप्यूटर का इस्तेमाल जो पहले केवल वैज्ञानिक करते थे ग्राफिकल यूजर्स इंटरफेस के आने के बाद साधारण लोग भी करने लगे.
विन्डोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम को इतना सरल बनाया गया की यूजर्स के साथ एक दोस्ताना सबंध कायम रह सके. दूसरे तरीके से देखा जाए तो, अगर हम अपने कार्य करने वाले कमरे को गौर से देखे तो हमें क्या नजर आयेगा? एक चादर बिछा टेबल, एक घड़ी, कलेण्डर, कचरा फेकने के लिए कूड़ादान, कॉपी कलम, दस्तावेज़ रखने के लिए अलमीरा इत्यादी. विंडोज को भी इस प्रकार के बनाया गया की किसी भी इस्तेमालकर्ता के लिए एक जाना पहचाना माहौल काम करने के लिए मिल सके. जब हम विन्डोज़ खोलते हैं तो कुछ इस प्रकार का स्क्रीन नजर आता है जहाँ इस्तेमाल किया जाने वाले सामानों को कुछ अलग नाम से जाना जाता हैं.

डी.ओ.स. डोस (डिस्क ऑप्रेटिंग सिस्टम)

 

वैज्ञानिकों के अलावा साधारण उपभोक्ताओं के लिये एक ऑपरेटिंग सिस्टम की शुरुआत की गयीं जिसका नाम डी.ओ.स. –डोस (डिस्क ऑप्रेटिंग सिस्टम) रखा गया. यह ऑप्रेटिंग सिस्टम कंसोल मोड आधारित था, अर्थात इसमें माउस का उपयोग नहीं होता था न ही इसमें ग्राफ़िक से सम्बंधित कोई काम हो सकता था. इसमें फाइल और डायरेक्टरी बनाया जा सकता था जिसमे हम टेक्स्ट को सुरक्षित कर के रख सकते थे और पुनः उपयोग भी कर सकते थे.

 

डी.ओ.स. पूर्णतः आदेश (COMMAND) पर आधारित होता था. आदेश के दुवारा ही कंप्यूटर को निर्देशित कर सकते थे. जिन्हें जितना आदेश याद होता था उसे उतना ही जानकार माना जाता था. आदेश (COMMAND)- यह कंप्यूटर को निर्देशित करने का तरीका होता हैं. पहले ही कंप्यूटर को यह बतला दिया जाता है की निम्न शब्द का प्रयोग करने से निम्न प्रकार का ही काम करना हैं. और जब कोई उपभोक्ता बस उस आदेश को लिखता हैं तो कंप्यूटर स्वतः उस काम को निष्पादित करता हैं.

 

डी.ओ.स. को ऑप्रेटिंग सिस्टम का माँ भी कहा जाता हैं, क्योंकि हम आज जिस भी ऑप्रेटिंग सिस्टम का उपयोग करते हैं उसका मुख्य आधार डी.ओ.स. ही होता हैं. बाद के समय में मायक्रोसॉफ्ट कंपनी ने इसे खरीद लिया, उसके बाद इसे ऍम.एस.डी.ओ.स. के नाम से जाना जाने लगा. हम यहाँ डी.ओ.स. के कमांडो का ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे क्योंकि आज हम प्रत्यक्ष रूप से इसका उपयोग नहीं करते हैं.

 

सबसे पहले हम चर्चा करेगे की प्रोम्प्ट क्या होता हैं?

 

डी.ओ.स. में साधारणतया हमें “C:\>_” प्रकार की आकृति बनी हुई दिखाई पड़ती हैं. जब हम डी.ओ.स. खोलते हैं तो स्क्रीन के बायीं ओर यह दिखलाई पड़ता हैं.

जहाँ-

C: यह बतलाता है कि हम हार्डडिस्क के किस भाग में हैं. सामान्यतः हार्डडिस्क C: D: E: में और फ्लॉपी A: के तौर पर दिखाई पड़ता हैं. यह क्रम कोई जरुरी नहीं होता.

\ यह बतलाता हैं कि हम किस डायरेक्टरी में हैं. डायरेक्टरी उस स्थान को कहा जाता हैं जहाँ हम फाइल को सुरक्षित रखते हैं, और फाइल हम उसे कहते हैं जिसके अंतर्गत सूचनाओं को रखा जाता हैं. दूसरे शब्दों में अगर कहें तो हम जो साधारण कॉपी पर लिखते हैं उससे फाइल कहा जाता हैं और उस कॉपी को सहेज कर रखने के लिये जो आलमारी या रैक का उपयोग किया जाता हैं उससे डायरेक्टरी कहते हैं.

> यह बतलाता हैं कि मुख्य जानकारी यहाँ समाप्त हुई.

_ यह टिमटिमाता छोटा लाइन कर्सर के नाम से जाना जाता हैं. यह जहाँ भी दिखता हैं उसका मतलब हुआ की हम उस जगह पर कुछ लिख सकते हैं.

नियंत्रण इकाई का काम 

 


कंप्यूटर पर कोई भी काम पहले से निर्धारित तरीके के अनुसार ही सम्पन्न होता हैं. अर्थात अगर हम की-बोर्ड पर “अ” बटन दबाते है तो वह एक निश्चित प्रक्रीया को पूरा करते हुए ही  हमें मोनिटर पर “अ” के रूप में दिखलाई पड़ता हैं.

कंप्यूटर में कोई भी डाटा डालने की क्रिया को इनपुट क्रिया कहते हैं. कंप्यूटर में इनपुट का काम की-बोर्ड या मोउस के द्वारा किया जाता है. जब हम की-बोर्ड में कोई एक बटन दबाते हैं तो वह संकेत केंद्रीय प्रसंस्करण इकाई को भेजता हैं. वहाँ कण्ट्रोल में जाँच प्रक्रिया के बाद संकेत रजिस्टर में जाता हैं जहाँ प्रांभिक मेमोरी में जाने के बाद वह संकेत दिखने के लिये आउटपुट में भेज दिया जाता हैं. आउटपुट का काम संकेतों को आकृति में दिखाने के लिये किया जाता हैं. जो मुख्यतः मोनिटर या प्रिंटर होते है. मोनिटर में दिखने वाली कॉपी को सोफ्ट कॉपी और प्रिंटर से निकाले गए कॉपी को हार्ड कॉपी कहा जाता हैं.

कंप्यूटर लोजिक (तर्क शस्ति)



बोध के उपयोग की प्रक्रीया को लोजिक कहा जाता हैं. कंप्यूटर तंत्र के सॉफ्टवेर कंप्यूटर की बोध-तंत्र होते है जो वस्तुतः कार्यक्रम एवं क्रिया अनुक्रिया के दिशा निर्देश होते हैं. इन्हीं के अनुसार कंप्यूटर तंत्र कार्य करते हैं. इन दिशा निर्देशों के अनुपालन हेतु कंप्यूटर विद्युत संकेतों का उपयोग करते हैं. विद्युत संकेतों एवं सूचनाओ के द्विदिशी संपरिवर्तन को कंप्यूटर लोजिक कहा जाता हैं. दो प्रकार के कंप्यूटर लोजिक का उपयोग होता है जिन्हें अनुवर्ती / एनालोग तथा अंकीय / डिजिटल लोजिक कहा जाता हैं.
अनुवर्ती / एनालोग तर्क शस्ति/ लोजिक मे सूचना के परिणाम एवं उसके आवर्तन का यथावत निरूपण होता है. अतः कंप्यूटर तन्त्र मे विद्युत संकेत का परिणाम सूचना के परिणाम के समानुपाती होता है. एनालोग लोजिक के विद्युत संकेत सूचना उपलब्द्धि के समय से उसके परिणामस्वरूप अनवरत होते है. अंकीय लोजिक मे विद्युत संकेत अनवरत न हो कर उर्मियों के स्वरुप मे एक सुनिश्चित आवृत्ति पर अथवा सुनिश्चित अवधि के लिये उपस्तिथ होते हैं
बाइनरी नंबर रूपान्तरण


हम जानते है की कंप्यूटर की मूल इकाई बस दो होती है ० और १. विश्व स्तरीय गणना के लिये १००० को मानक माना जाता है. मतलब १००० ग्राम = १ किलोग्राम, १००० मीटर = १ किलोमीटर आदि.
कंप्यूटर गणना के लिये अगर दो के गुणक मे १००० के मानक मे देखा जाये अर्थात,
1          X         1          =1
2          X         2          =4
1          X         2          =2
4          X         2          =8
8          X         2          =16
16        X         2          =32
32        X         2          =64
64        X         2          =128
128      X         2          =256
256      X         2          =512
512      X         2          =1024
1024    X         2          =2048
१००० के सबसे नजदीक १०२४ ही आता है. ठीक उससे एक पहले ५१२ आता है जो १००० से बहुत कम है और ठीक एक बाद २०४८ आता है जो १००० से बहुत ज्यादा होती है. इस कारण कंप्यूटर मे १०२४ को ही मानक मान लिया गया हैं.
अब हम डिजिटल नंबर को बाइनरी नंबर मे बदलने की सबसे आसान तरीका देखेंगे.
सबसे पहले हम एक चार्ट इस तरह से बनाएँगे –
……… 128 64 32 16 8 4 2 1



























अब जिस डिजिटल नंबर को बाइनरी नंबर मे बदलना है उसको लेंगे. उदाहरण के लिये जैसे, 10 को बाइनरी नंबर मे बदलना है तो हम चार्ट मे देखेंगे की किन-किन नंबरों को जोड़ने से 10 होता हैं. तो 8+2=10 होगा. तो हम चार्ट मे 8 के नीचे वाले खाने मे 1, और   2 के नीचे वाले खाने मे 1 लिखेंगे और बचे हुए खाने मे ० लिख देंगे.
……… 128 64 32 16 8 4 2 1





1 0 1 0
=1010
अर्ताथ 10 का बाइनरी नंबर  1010 हुआ.
दूसरा उदाहरण –
13 को बाइनरी नंबर मे बदलना है तो हम चार्ट मे देखेंगे की किन-किन नंबरों को जोड़ने से 13 होता हैं. तो 8+4+1=13 होगा. तो हम चार्ट मे 8 के नीचे वाले खाने मे 1, और   4 के नीचे वाले खाने मे 1 और  1 के नीचे वाले खाने मे 1 लिखेंगे और बचे हुए खाने मे ० लिख देंगे.
……… 128 64 32 16 8 4 2 1





1 1 0 1
=1101
अर्ताथ 13 का बाइनरी नंबर  1101 हुआ.
ठीक इसी तरह अगर पहले से बाइनरी नंबर दिया हुआ हो तो उससे इस चार्ट में दाएँ से बाये लिख कर हम डिजिटल नंबर में बदल सकते हैं.
उदाहरण –
……… 128 64 32 16 8 4 2 1





1 0 0 1
नीचे के खाने मे जहाँ जहाँ १ है अगर उसके योग को देखा जाये तो डिजिटल नंबर आ जाता हैं. ऊपर से चार्ट मे 8 और 1 के नीचे 1 हैं अतः 8+1 करने पर 9 आयेगा.
1001  डिजिटल नंबर 9 होता है.

कंप्यूटर और मानवीय मस्तिष्क

 

कल्पनाशीलता अथवा रचनात्मकता कंप्यूटरों की सीमा के बाहर है. जिस किसी काम की कभी कल्पना नहीं की गई हो कंप्यूटर उसे नहीं कर सकते जबकि मानवीय मस्तिष्क इस सीमा को लांघने की शक्ति रखता है. कंप्यूटर मानवीय मस्तिष्क से संभव हो सकने वाले कामो में से बहुत कम काम ही कर सकता है इसलिए कंप्यूटर मानव के दास की भूमिका में ही केवल सटीक बैठता है. कंप्यूटर जो भी काम कर सकता है दरसल वो मानवीय मस्तिष्क का ही देन होता हैं. हरेक एक मनुष्य का मस्तिष्क अलग अलग होता है, वो एक ही काम को अलग अलग तरीकों से करेगा, परन्तु १० या १००० एक जैसा तैयार किया गया कंप्यूटर एक जैसा ही काम करता है.

कंप्यूटर प्रोग्रामर (जो कंप्यूटर को निर्देषित करता है) कंप्यूटर को पहले बतलाता है की ________ + _______ = ? का अगर कहीं जवाब देना हैं तो खाली जगह में भरा गया पहले नंबर का बिट  और दूसरे नंबर की बिट को जोड़ने पर जो भी बिट आयेगी उससे पुनः डिजिटल में प्रदर्शित करना है. इसके बाद जब भी कोई यूसर (जो बनाये गए प्रोग्राम को उपयोग करता है) ______+______=? के जगह ५ + ४ = ? पूछेगा तो कंप्यूटर तुरंत ५+४ = ९ को प्रदर्शित कर देगा. इसके बदले अगर वह बार बार कोई अलग संख्या भी देगा तो उससे तुरंत जवाब मिलेगा.

डाटा क्या है?


असिध्द तथ्य अंक और सांख्यिकी का समूह, जिस पर प्रक्रिया करने से अर्थपूर्ण सूचना प्रप्ता होती है।

प्रक्रिया क्या है ?
डाटा जैसे- अक्षर, अंक, सकंख्यिकी या किसी चित्र को सुव्यवस्थित करना उनकी गणना करना प्रक्रिया कहलाती है। डाटा को संकलित कर, जाँचा जाता है और किसी क्रम में व्यवस्थित करनें के बाद संग्रहीत कर लिया जाता है, इसके बाद इसे विभिन्न व्यक्यि (जिन्हें सूचना की आवश्यकता है) को भेजा जाता है। प्रक्रिया में निम्नालिखित पदो का समावेश होता है।
गणना :-जोडना, घटाना, गुड़ा करना, भाग देना।
तुलना :बराबर , बड़ा छोटा, शून्य, धनात्मक ऋणात्मक ।
निर्णय लेना : किसी सर्त के आधार पर विभिन्न अवस्थाएँ।
तर्क: आवश्यक परिणाम को प्राप्त करने के लिए पदों का क्रम।
केवल स्ख्याओं (अंकों) की गणना को ही प्रक्रिया नहीं कहते हैं। कम्प्यूटर की सहायता से दस्तवेजो में त्रुटियाँ ढ़ूढ़ना, टैक्ट को व्यवस्थित करना आदि भी प्रक्रिया कहलाता है।

सूचना क्या है?
जिस डाटा पर प्रक्रिया हो चुकी हो,वह सूचना कहलाती है। अर्थपूर्ण तथ्य,अंक या सांख्यिकी सूचना होती है। दूसरो शब्दों में डाटा पर प्रक्रिया होने के बाद जो अर्थपूर्ण डाटा प्राप्त होता है, उसे सूचना कहतें। अनुरूपता की विभिन्न श्रेणियों का गुण रखने वाली उपयोगी सामग्री होती होती है-सूचना निम्नालिखित कारणों से अति-आवश्यक और साहायक होती है-
(a) यह जानकारी
(b) यह वर्तमान और भविष्य के लिए निर्यय लेने में सहायता करती है
(c) यह भविष्य का मूल्यांकन करने में सहायक है।

सूचना के गुण
हम जानते है कि सूचना किसी प्रणाली के लिए अति अवश्यक कारक हैं इस लिए सूचना में अग्रलिखित गुण होने चाहियेः
(a) अर्थपूर्णता
(b) विस्मयकारी तत्व
(c)पूर्व जानकारी से सहमति
(d)पूर्व जानकारी में सुधार
(e) संक्षिप्तता
(f)शुध्दता या यथार्थता
(g)समयबध्ता
(h) कार्य-संपादन में सहायक

आपरेटिंग सिस्टम के प्रकार

उपयोगकर्ता की गिनती के आधार पर आपरेटिंग सिस्टम को दो भागो मे विभाजित किया गया है ।
1)एकल उपयोगकर्ता
एकल उपयोगकर्ता आपरेटिंग सिस्टम वह आपरेटिंग सिस्टम है जिसमे एक समय मे केवल एक उपयोगकर्ता काम कर सकता है ।

2)बहुल उपयोगकर्ता
वह आपरेटिंग सिस्टम जिसमे एक से अधिक उपयोगकर्ता एक ही समय मे काम कर सकते कर सकते है

काम करने के मोड के आधार पर भी इसे दो भागो मे विभाजित किया गया है ।

1)कैरेक्टर यूजर इंटरफेस
जब उपयोगकर्ता सिस्टम के साथ कैरेक्टर के द्वारा सूचना देता है तो इस आपरेटिंग सिस्टम को कैरेक्टर यूजर इंटरफेस कहते है
उदाहरण डॉस, यूनिक्स

2)ग्राफिकल यूजर इंटरफेस
जब उपयोग कर्ता कम्पयुटर से चित्रो के द्वारा सूचना का आदान प्रदान करता है तो इसे ग्राफिकल यूजर इंटरफेस कहा जाता है ।
उदाहरण विन्डो


ऑपरेटिंग सिस्टम
ऑपरेटिंग सिस्टम व्यवस्थित रूप से जमे हुए साफ्टवेयर का समूह है जो कि आंकडो एवं निर्देश के संचरण को नियंत्रित करता है
ऑपरेटिंग सिस्टम की आवश्यकता
आपरेटिंग सिस्टम हार्डवेयर एवंसाफ्टवेयर के बिच सेतु का कार्य करता है कम्पयुटर का अपने आप मे कोई अस्तित्व नही है । यङ केवल हार्डवेयर जैसे की-बोर्ड, मानिटर , सी.पी.यू इत्यादि का समूह है आपरेटिंग सिस्टम समस्त हार्डवेयर के बिच सम्बंध स्थापित करता है आपरेटिंग सिस्टम के कारण ही प्रयोगकर्ता को कम्युटर के विभिन्न भागो की जानकारी रखने की जरूरत नही पडती है साथ ही प्रयोगकर्ता अपने सभी कार्य तनाव रहित होकर कर सकता है यह सिस्टम के साधनो को बाॅटता एवं व्यवस्थित करता है।
आपरेटिंग सिस्टम के कई अन्य उपयोगी विभाग होते है जिनके सुपुर्द कई काम केन्द्रिय प्रोसेसर द्वारा किए जाते है । उदाहरण के लिए प्रिटिंग का कोई किया जाता है तो केन्द्रिय प्रोसेसर आवश्यक आदेश देकर वह कार्य आपरेटिंग सिस्टम पर छोड देता है । और वह स्वयं अगला कार्य करने लगता है । इसके अतिरिक्त फाइल को पुनः नाम देना , डायरेक्टरी की विषय सूचि बदलना , डायरेक्टरी बदलना आदि कार्य आपरेटिंग सिस्टम के द्वारा किए जाते है । इसके अन्तर्गत निम्न कार्य आते है
1) फाइल पद्धति
फाइल बनाना, मिटाना एवं फाइल एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना । फाइल निर्देशिका को व्यवस्थित करना । 2) प्रक्रिया
प्रोग्राम एवं आंकडो को मेमोरी मे बाटना । एवं प्रोसेस का प्रारंभ एवं समानयन करना । प्रयोगकर्ता मध्यस्थ फाइल की प्रतिलिपी ,निर्देशिका , इत्यादि के लिए निर्देश , रेखाचित्रिय डिस्क टाप आदि 3) इनपुट/आउटपुट
माॅनिटर प्रिंटर डिस्क आदि के लिए मध्यस्थ

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